जन कल्याण संस्थान
एक परिचय
भारतीय समाज रूपी गुलदस्ते में भिन्न-भिन्न रंगों के पुष्प सुषोभित रहे हैं। भाषा, खान-पान, वेषभूषा और उपासना पद्धतियां भिन्न होते हुए भी संस्कृति एक ही रही। इतिहास साक्षी है कि जब-जब इस समाज के सांस्कृतिक ताने-बाने से बलपूर्वक या छलपूर्वक छेड़छाड़ की गई, तब-तब स्वधर्म विरोध, अराजकता, आतंकवाद और राष्ट्रद्रोह की उपज हुई।
सामाजिक समरसता ही धर्म, आध्यात्म, सांस्कृतिक एकरूपता, संगठित और समृद्ध समाज के साथ-साथ जन कल्याण एवं मजबूत देष का मूल आधार रही है।
इसी आधार को अक्षुण्ण रखने के लिए धर्म जागरण समन्वय विभाग विगत कई वर्षों से कटिबद्ध होकर भारत में एक अलख जगा रहा है। इस विभाग के राजस्थान देष की एक पंजीकृत संस्था के रूप में जन कल्याण संस्थान की स्थापना की गई है।
प्रमुख उद्देष्य
समाज व धर्म (जीवन पद्धति) के संबंध का अध्ययन करना, भारतीय समाज पर विभिन्न धर्मों (जीवन पद्धतियों) के प्रभावों का अध्ययन करना, समाज के वर्तमान व भविष्य के स्वरूप को पहचानना, संभावित चुनौतियों व उपचारों को खोजना व निराकरण के लिए प्रयास करना।
भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों, विचारधाराओं, मान्यताओं, आन्दोलनों पंथों का अध्ययन कर हितबद्ध लोगों को जानकारी प्रदान करना, सामाजिक उत्थान, सुधारवादी आन्दोलनों या विचारों का अध्ययन कर उन्हें सभी प्रकार की सहायता (संगोष्ठियों, सामाजिक आयोजनों इत्यादि के माध्यम से) प्रदान करना।
विधि पर धर्म (जीवन पद्धति) का व धर्म (जीवन पद्धति) पर विधि के प्रभाव एवं संबंधों का अध्ययन करना, समाज सुधार, धार्मिक कुरीतियों, भ्रामक दुष्प्रेरणाओं के उन्मूलन संबंधी विधि का अध्ययन करना, उनका प्रचार-प्रसार करना। ऐसी विधि या विधियों के विकास, संषोधन, संवर्द्धन आदि की सम्भावनाओं को खोजना व सरकार को सुझाव प्रेषित करना।
उन सभी उद्देष्यों के लिए कार्यक्रम आयोजित करना, संस्कृति समन्वय केन्द्र, उप-समितियां, शोधस्थल, शाखाएँ स्थापित करना, संचालित करना संगठित करना व उन्हें पोषित करना एवं समय-समय पर इससे सम्बन्धित समस्त विषयों के संबंध में आवष्यक नियम व उपनियम बनाना एवं कार्यकारिणियों का गठन करना।
उन सभी प्रयोजनों हेतु व्याख्यान, सेमिनार, कार्यषालाएँ, सामाजिक आयोजन इत्यादि करना व इनसे संबंधित पुस्तकें, जर्नल, पुस्तिकाएँ, पम्पलेट इत्यादि सामग्री प्रकाषित व वितरित करना एवं उन उद्देष्यों की प्राप्ति हेतु सामग्री प्राप्त करना।
छूटी हुई सांस्कृतिक कड़ी का पुनर्निर्माण: धर्म जागरण
भारत की ताकत है ? यह यक्ष प्रष्न हर उस शक्ति के लिए हमेषा बना रहा है, जिसने भारत को जीतने की कोषिष की है। यही कारण है कि सदियों से विदेषी आक्रांताओं के आक्रमण झेलने के बाद भी भारत आज भी है और भारत को जीतने का सपना देखने वाले आक्रांता और उनकी सभ्यता या तो समाप्त हो गये या अपने अस्तित्व के लिए आज भी संघर्षरत है।
यदि हम भारत को और उसकी सामाजिक संरचना को गौर से देखें तो पाएगें कि भारतीय समाज में आत्मसात कर लेने की शक्ति है। किसी सभ्यता या संस्कृति के गुणों को अपने साथ आत्मसात कर लेना भारत का वैषिष्ट्य है, यही कारण है कि हम भारतीय समाज को विभिन्न रूपों में अपने अन्दर देखते हैं। हमारी यह विषिष्टता भी हमारी आंतरिक ताकत को प्रखरता प्रदान करता है।
भारतीय सामाजिक संरचना सदा से ही जागृत रही है, पहले यह काम गुरूकुलों और सन्यासियों के द्वारा किया जाता था, अब अनेक सेवाकार्य करने वाले संगठन भारत में सामाजिक चेतना को मांजने का काम करते हैं। जन कल्याण संस्थान की स्थापना भी सामाजिक मंथन की इस प्रक्रिया को और अधिक प्रखर बनाने के लिए हुई है।
1925 में अपनी स्थापना के समय से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिन्दू समाज के जागरण का सतत् प्रयास कर रहा है। 93 वर्ष की इस विकास यात्रा में संघ ने समाज के हर स्वरूप को स्वीकारते हुए उसी के अनुरूप अपने आप को ढ़ालते हुए, हिन्दू समाज के जागरण का कार्य किया है। धर्म जागरण भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधि है। धर्म जागरण गतिविधि के अन्तर्गत देषभर में कई परियोजनाएं एवं प्रकल्प संचालित हैं, जो समाज की अन्तर्धाराओं की पहचान करते हुए उनमें समन्वय करने और उनमें हिन्दुत्व का भाव जागृत करने के प्रयासों में संलग्न है।
Jankalyan Sansthan
It is an educational research project conceptualized in the light of pursuing goal of undertaking the research study to understand the diversified Sods Cultural aspects of Indian Society in its realistic format. In the last 2000 years much has been changed in terms of demographic characteristics, cultural beliefs, rituals traditions, spiritual beliefs, opinions attitudes, standard of living, occupation pattern, job opportunities movement of people from one corner to another across the globe. There has been a constant inquisitiveness among people at large about our origin, roots, ancestry socio-cultural legacy and journey of morphosis till date. Indian cultural is the oldest and most ancient culture of the world. It has been very great and glorified culture from the time immemorial and most scientific. But due to various reasons, there has been a great damage and deterioration during past few decades. Which resulted into various socio-politico cultural ailments in the country such as parochial individualism, classism, regionalism, lingualisrn, naxalism etc., tarnishing and conflicting the tranquility of “Socio-Cultural Harmony†in the nation thus causing economic backwardness resulting into poverty, unemployment and other such ailments.
Major Activities / Programs of SCRF
The foundation will undertake research activities relating to the areas of social concerns and cultural issues having bearing on overall development of the society.
Organizing training programmed for capacity building of youths in general and tribal youths and marginalisrn particular.
Undertaking advocacy programs for creating pressure groups and opinion maker for bringing
about reforms in the system for maintaining socio-cultural harmony.
Publication of books, literature, research journals, news letters and preservation of ‘Poranik’
records, ‘Vansavalils’ being maintained and retained by Vansavali writers.
Organizing seminars, symposiums, conference, workshop, lectures and other such programs which are helpful in carrying the activities forward undertaken by the SCRF.
Undertaking Diploma / certificate programs relating to Vansavali preservation and promotion, maintenance of cultural heritage etc. Developing close working relation in teaching and research on the problems and issues relating to social and cultural concerns, with research institutes, universities and colleges and with other cognate institutions located in India or Abroad.
Offering fellowship including visiting fellowship and appointing Associate Fellows furtherance of research on projects dealing with socio-cultural issues.
Scope and Coverage of SCRF
The SCRF will go in deep for identifying the problem with which a particular social group is facing and explore the possibilities of solving such problems through finding appropriate solutions. These projects may relate to tribal issues, rural areas, urban slums and coastal areas. The foundation will make an attempt to address the specific problems relating to Muslims majority colonies, their educational institutions, woman security and save the girl child.